एक तरफ टीकाकरण अभियान के पहले चरण के दावे किए जा रहे हैं वहीं टीकाकरण योद्धाओं के भीतर अभी भी मन में संकोच है टीकों से डर और अलग-अलग तरह की भ्रांतियां फैला रखी है । लेकिन वास्तविकता में उन्हें इस टीके की बहुत ही जरूरत है । उन्होंने हर कदम पर कोरोना को मात देने के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है और करते रह रहे हैं लेकिन उनकी सुरक्षा के मद्देनजर यह टीकाकरण बहुत ही विशेष है जिससे वे अपनी सकारात्मकता के साथ और ज्यादा अपनी भूमिका निभा सके । पहले चरण में चिकित्सकों, नर्सों और अस्पताल कर्मियों सहित स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को टीके प्रदान करने का लक्ष्य है।
कोकीन का टीका लगवाने की प्रक्रिया में एक सरकारी अस्पताल के रजिडेंट डाॅक्टरों ने टीका लगवाने के लिए कुछ तर्क देते हुए उसे टाल दिया। इसी तरह अन्य राज्यों से ऐसी रिपोर्टें सामने आई कि टीकाकरण करवाने के लिए इंतजार करते दिखे। अब खबर यह सामने आ रही है कि एक महीना बीत चुका है उसके बाद भी टीके की उपलब्धता में कमी है जो कि वास्तविकता से यह तथ्य गलत है। लोगों में एक यह संदेश भी गया है कि यह टीका पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है। लेकिन बाद में जांच से पता चला कि टीका लगने के बाद हुई मौतों का कारण नहीं था।
टीका लगवाने के उपरांत अपनी सुरक्षा के संबंध में गुलेरिया और डाॅ. पाल ने अपनी जानकारी सकारात्मक रूप से जाहिर करते हुए इसे सुरक्षित बताया। अब समस्या यह आ रही है कि अगर स्वास्थ्य कर्मचारियों का टीकाकरण बंद हो जाएगा तो आम लोगों को टीकाकरण के लिए कैसे प्रेरित किया जाएगा। टीकाकरण के बाद कुछ लोगों के प्रतिकूल प्रभाव ने भी टीका के बारे में असुरक्षा दिखाई। इन घटनाओं के बाद, वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों ने भी दिशानिर्देश जारी कर बताया था कि कौन से लोग टीकाकरण नहीं करवाना चाहते हैं। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए टीकाकरण भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वे ही हैं जिन्हें महामारी की इस चुनौती का सबसे अधिक सामना करना पड़ता है। फिर भी हम कोरोना के प्रकोप से पूरी तरह मुक्त नहीं हुए हैं।
महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्यों में संक्रमण फैलने से पता चलता है कि महामारी फिर से कहर बरपा सकती है, जैसा कि ब्रिटेन, जर्मनी और संयुक्त राज्य अमेरिका में देखा गया है। टीमा की पहली खुराक लेने के बाद कई लोगों में यह भी देखा गया है कि दूसरी खुराक लेने के लिए उनकी संख्या में कमी आई है।